उत्तर भारत स्थित गुर्जर प्रतिहारों के मन्दिर शक्ति के प्रतीक 

 


Sthapatyam
Volume. 6
Issue.1
श्रेया गौतम
दिव्यांश ठाकुर


उत्तर भारत में नौवी से ग्यारहवीं शताब्दी में गुर्जर प्रतिहारों का सम्राज्य था जिनके विषय में यह कहा जाता था कि सम्भवतः इनका प्राकट्य बलि बेदी की अग्नि से हुआ था प्रतिहारों ने बहुत से मन्दिरों का निर्माण कराया, जिनको देखकर उनकी शौर्य और शक्ति का अहसास होता है। 
मध्य युगीन भारत (700-1300 CE) सिरसा जाति बन्धन से बंधा हुआ समाज था जहाँ शक्ति प्रदर्शन अवश्यक था। राजपूत अग्नि की बेदी से आये, या बा्रह्मणों से पैदा हुये यह विवाद का विषय है पर उनके नाम के साथ सूर्यवंशी और चँद्रवंशी नाम का होना उनकी व्यक्तित्व को राजसी स्वरूप प्रदान करता है। 



Source: Author
जोधपुर स्थित मण्डोर के अभिलेख (6 CE) से यह स्पष्ट हो जाता है कि इस राज परिवार का प्राकट्य हरिचँद्र नामक ब्राह्मण और उसकी क्षत्रिया पत्नी (भद्रा) से हुआ था। गुर्जर प्रतिहार राजवंश की उत्पत्ति के लिए भी ऐसा कहा जाता है। हिमालय क्षेत्र से लेकर शिवालिक क्षेत्र तक प्रतिहारों द्वारा बनवाये मन्दिरों के भग्नावशेष देखे जाते है। जिनमें अधिकांश राजा रामभ्रद और उसके उत्तराधिकारी नागभट्ट द्वितीय के द्वारा बनवाये गये है। प्रतिहार राजाओं ने शक्ति प्रदर्शन करने के लिये मन्दिरों का निर्माण कराया। मध्य युगीन भारत में मन्दिर प्रगाढ़ आस्था के केन्द्र थे। प्राचीन समय मे सभी धर्म राजनीति केन्द्रित थे। अपने विजय को दर्शाने का माध्यम भी मन्दिर, मस्जिद या गुरूद्वारे ही थे जहाँ आशीर्वाद पाने की लालसा विजयी शासक को रहता था। 
मन्दिरों के निर्माण से उनके संबन्ध पुरोहितो और जनता के बीच भी अच्छे रहते थे। पुरोहित शासक को पंसद करते और उसका पक्ष लेते थे जिससे दूसरे शासक के आने का डर नहीं रहता था। मन्दिर का निर्माण एक सोची हुई प्रक्रिया थी। अर्थशास्त्र (7, 14, 18, 25) से भी इस बात की पुष्टि होती है कि मन्दिरों के निर्माण शासकों की शक्ति समृद्धि, प्रसिद्धि और समाज में उनका प्रतिष्ठित स्थान देखा जाता था।
  


रेनु पाण्डेय
संपादक
स्थापत्यम्