Sthapataym
Volume. 3
Issue.6
डाॅ. आनन्द कुमार गौतम
प्रियंका
प्राचीन काल से संगीत को जीवन का मुख्य आधार माना गया है जो न केवल मनुष्य की सहज स्वभाविक अभिव्यक्ति से सम्बन्धित है वरन उसके शास्त्रीय एवं लोक स्वरूपों में समाज की कला एवं संस्कृति का मूक साक्षी भी है। भारतीय संगीत परम्परा में नटेश शिव को नृत्य एवं संगीत का आदि प्रवर्तक कहा गया है साथ ही नारद एवं तुम्बरू ऋषि को संगीत विशारद माना गया है।
ऋग्वेद में इन्द्र, मरू एवं अश्विनी कुमारों को संगीत से निकट संबन्ध बताया गया है साथ ही सन्दर्भित है कि सोमपान के उपरान्त मरूत सौ तारों वाले वीणा का वादन करते थे। यजुर्वेद में भी वीणा का सन्दर्भ प्राप्त होता है। शतपथ ब्राह्मण में उल्लिखित है कि जो व्यक्ति विद्वता प्राप्त कर लेता था उसके सम्मान में वीणा वादन किया जाता था। वैदिक काल में ताल्लुक वीणा, काण्ड वीणा, पिन्छोरा वीणा, अलाबु वीणा तथा कपिशीर्ष वीणा प्रचलित थी। रामायण एंव महाभारत में विपञ्ची वीणा, तन्त्री वीणा तथा कच्छपी वीणा का विवरण प्राप्त होता है।
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नाट्यशास्त्र में चार प्रकार की वीणा का उल्लेख प्राप्त होता है जिसमें चित्रा वीणा, विपञ्ची वीणा, कच्छपी वीणा एवं घोषक वीणा सम्मिलित है। अमरकोष में वल्लभी विपञ्ची एवं परिवादिनी वीणा का उल्लेख प्राप्त होता है। रघुवंश में वीणा के लिये परिवादिनी, वल्लभी एवं सुतन्त्री शब्द का सन्दर्भ मिलता है। मृच्छकटिकम् में वीणा को उत्कंठित व्यक्ति की संगिनी व्याकुल व्यक्ति का विनोद, विरही का धैर्य एवं प्रेमियों के राग में वृद्धि करने वाला कहा गया है। तैतरीय ब्राह्मण में कहा गया है कि अश्वमेघ यज्ञ के समय एक ब्राह्मण दिन में और एक क्षत्रीय रात में वीणा वादन करता था। मालविकाग्निमित्रम् एवं रघुवंश से ज्ञात होता है कि राजा के मनोरंजन के लिये संगीत का आयोजन किया जाता था।
समुद्रगुप्त और कुमारगुप्त प्रथम की वीणाधारी प्रकार की मुद्राओं पर उनको वीणा वादक के रूप में चित्रित किया गया है। गुप्त सम्राट समुद्रगुप्त की संगीत में प्रवीणता एवं कौशलता की पुष्टि उनकी प्रयाग प्रशस्ति अभिलेख से भी प्राप्त होती है।
गुप्तकालीन वीणा के आकार प्रकार में अन्तर देखा जाता है। गुप्तकालीन स्वर्ण मुद्राओं के अलावा तत्कालीन प्रस्तर शिल्पकला एवं मृ. मूर्तिकला में भी वीणा वादन के साक्ष्य मिलते हैं। पवाया से प्राप्त गुप्तकालीन प्रस्तर शिल्पकला में अन्य वाद्य यंत्रों के साथ एक स्त्री वीणा वादन करती हुई देखी जा सकती है। मेघदूत में यह प्रसंग मिलता है कि स्त्रियाँ अपने पति के यशोगान से प्रसन्न होकर अपने जंघा पर वीणा रखकर उसका वादन करती थी। गुप्तकालीन कला स्थल रोपड़ से मिली एक मृ. मूर्ति में एक स्त्री अपने गोद में वीणा रखकर वादन करती हुई मिली है। ब्रिटिश संग्रहालय (लंदन) में एक मूर्ति है जिसमें एक व्यक्ति नाव के आकार का वीणा लेकर गायन भी कर रहा है। गुप्तकाल के उच्च प्रतिनिधि को स्वर्ण मुद्राओं एवं प्रस्तर शिल्प पर वीणा वादन करते हुये दिखाया गया है वहीं जन सामान्य में भी वीणा वादन प्रचलित थी जिसका प्रमाण मृ. मूर्तियों को देखकर होता है।
रेनु पाण्डेय
संपादक
स्थापत्यम् जर्नल