बारबरा पहाड़ी की एक गुफा 'सुपिया'

Sthapatyam
Vol.3
Issue.6
डाॅ. नीरज कुमार पाण्डेय
डाॅ. चन्द्रनील शर्मा


बिहार के गया जिले से 25 कि.मी. उत्तर में बारबरा और नागार्जुनी नाम की 2 पहाड़ियाँ स्थित हैं,  जो अपने प्राचीन और सुदृढ गुफा निर्माण के लिये जानी जाती है। संभवतः यह पत्थरों को काटकर गुफा बनाने का पहला सफल प्रयास था। इनकी चमकदार अन्दर की दीवारों को देखकर मौर्य युगीन कहना ठीक रहेगा। चार गुफाओं का निर्माण बारबरा की पहाड़ी में और तीन नागार्जुनी की पहाड़ी में है। अलेक्जेण्डर कनींघम ने सबसे पहले इन्हें देखा और इसके विषय में आर्किलाॅजिकल सर्वे ऑफ़ इण्डिया में प्रकाशित कराया। उसके बाद कई अन्य विद्वानों ने भी इस पर शोध किया। यहाँ से प्राप्त अभिलेखों में इन पहाड़ियों का नाम गोरथगिरि, खलतीका और प्रवरगिरि है। बारबरा पहाड़ी के चार गुफाओं में एक गुफा का नाम कर्ण चौपड़ है जो 33 फीट लम्बा, 14 फीट चौड़ा और 10 फीट ऊँचा है। मौर्थन पाॅलिस से सज्जित इस गुफा में सम्राट अशोक के उन्नीसवें वर्ष के सम्राट होने के अवसर पर अभिलेख लिखवाया गया है जिसमें सुपिया नाम की एक समर्पित सेविका का उल्लेख है और गुफा को सुपिया कहा जाता है। 



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सुपिया का उल्लेख बौद्ध ग्रन्थ के विनय पीटक में भी मिलता है। सुपिया और सुपीय श्रावक श्रावीका थे जो बनारस में रहते थे। सुपिया बौद्ध धर्म को समर्पित श्राविका थी। सुपिया बौद्ध बिहारों में जाकर भिक्षुओं की सेवा करती थी। 
एक दिन एक भिक्षु को अतिसार हो गई और उसने माँस का सूप पीने की इच्छा सुपिया से जाहिर की। सुपिया ने अपने शिष्यों से माँस लाने की बात कही पर माँस नहीं मिला, जिससे की सूप बनाया जाये। अंत में सुपिया ने सोचा, अगर भिक्षु को माँस का सूप नहीं मिला तो वह मर जायेगा। उसने अपने जाँघ का माँस काटकर शिष्य को दिया और भिक्षु के स्वस्थ होने की कामना की।
एक दिन भगवान बुद्ध सुपीय के कहने पर सुपिया के घर खाने आये वहाँ उन्होने सुपिया के अस्वस्थ होने के विषय में जाना और उसे स्वस्थ किया। बीमार भिक्षु से पूछने पर कि उसने किसका माँस खाया तो उसे पता नहीं था इस पर उसे भगवान बुद्ध ने डाँटा और बताया कि वह सुपिया का माँस था। बीमार भिक्षु शर्मिन्दा हो गया तब भगवान बुद्ध ने भिक्षुओं को उपदेश दिया कि यदि कोई मनुष्य स्वेच्छा से और अच्छी भावनाओं के साथ अपना माँस खिलाता है तो उसे खाना चाहिये। 
बारबरा पहाड़ी की सुपिया गुफा का नाम इसी कहानी के ऊपर पड़ा। अभिलेख में भी सुपिया का नाम इस कहानी की सत्यता को साबित करता है। 
रेनु पाण्डेय
संपादक
स्थापत्यम्